March 15, 2025
रोमांचकलाइफस्टाइल

जब डाली की बनाई ऐशट्रे के लिए भारत से भेजा गया हाथी

ऐशट्रे का नाम सुनते ही आपके दिमाग में यदि जलती हुई सिगरेट घूम जाती है तो शायद अगली बार  ऐसा ना हो वजह यह कि इनके पीछे भी कोई कहानी हो सकती है, यह ख़ास तौर पर बनी हो सकती हैं और यह भी संभव है कि किसी पुरानी ऐशट्रे के बदले आपको अच्छी खासी रकम ही मिल जाए बशर्ते वह अनूठे कलाकार साल्वाडोर डाली ने डिज़ाइन की हो. 

अपने होंठों के आकार वाले सोफे पर बैठे डाली एक शाम एक ऐसी ऐश ट्रे की डिज़ाइन सोच रहे थे जो उन्हें एयर इंडिया के कुछ चुनिंदा ग्राहकों के लिए गढ़ना थी. साठ के दशक में हवाई जहाज की यात्रा करने वाले चुनिंदा ही लोग हुआ करते थे और जाहिर तौर पर ये उड़ान भरने वाले चुनिंदा लोग एयर इंडिया के लिए काफी मायने रखते थे. इसके मुखिया रहे कूका के बनाये लोगो और कुछ सहयोगियों के साथ उनका बनाया शुभंकर “महाराजा” ख़ास पहचान बना चुके थे लेकिन अपने कुछ कस्टमर्स को ख़ास होने का अहसास दिलाने के लिए भी कुछ नया करना ही था. वह दौर डाली का था पेंटिंग्स के अलावा वे दुनिया भर में अपने अति यथार्थवाद, अपनी नुकीली मूंछों, अपनी बनाई फिल्म, फोटोग्राफी, अनूठे फर्नीचर डिज़ाइन, चींटीखोर जानवर को पालतू की तरह घुमाने जैसी चीज़ों से ख्यात हो चुके थे. डाली का प्रभाव भारत में भी कला प्रेमियों पर काफी था और यहीं से इस विचार की शुरुवात हुई कि क्यों न उनकी बनायीं हुई कोई कृति ही अपने ख़ास ग्राहकों को दी जाएँ। न्यूयोर्क के होटल में एयर इंडिया के अधिकारी डाली से मिले और तय हुआ कि वे ऐसी ऐश ट्रे डिज़ाइन कर दें जो खास 500 ग्राहकों को गिफ्ट की जा सके. अचरज यह था कि डाली इस बात के लिए राजी हो गए क्योंकि इस बात की सम्भावना काफी कम ही लग रही थी. अधिकारियों के लिए अचरज अभी बाकी था, जब उन्होंने डाली से पूछा कि वे इसके बदले में क्या मेहनताना चाहेंगे तो डाली ने कहा उन्हें इसके बदले में एक जीता जागता हाथी चाहिए जिस पर बैठ कर वे आल्प्स पर्वत की सैर कर सकें। हिचकते हुए अधिकारियों ने शर्त मान ली हालांकि वे जानते थे कि किसी ज़ू से हाथी लेना और उसे स्पेन में डाली के कसबे तक पहुंचाना काफी मुश्किल काम होगा। बमुश्किल ही सही एयर इंडिया ने अपना वादा पूरा किया और उधर डाली ने भी हाथी और हंस की आकृति के साथ एक ऐश ट्रे डिज़ाइन पूरी करने में जुट गए. इधर हाथी के पहुँचने की बात साफ़ हुई और उधर डाली ने अपने साथी टी. लिमोजेस से उस डिज़ाइन पर ऐश ट्रे बनवा लीं. उधर कैडकस यानि डाली के कस्बे वाले अलग ही तैयारी में जुटे हुए थे. मेयर ने हाथी आने की ख़ुशी में तीन दिन की छुट्टी घोषित कर दी और निवासियों ने एक बड़े जुलूस की तैयारी कर ली ताकि डाली को पूरे शहर में घुमाया भी जा सके और सभी को आया हुआ हाथी दिखाया भी जा सके. आयोजन बढ़िया रहा लेकिन डाली कई वजहों से वह सपना पूरा नहीं कर सके जो उन्होंने भारत से गए हाथी के साथ आल्प्स पर्वत की सैर को लेकर देखा था. हाथी के सफर का अंत बंगलोर ज़ू से बार्सिलोना के ज़ू में ख़त्म हुआ और इधर चुनिंदा लोगों को मिले एयर इंडिया के गिफ्ट वाली ऐश ट्रे या तो आर्ट इक्कठा करने वालों तक पहुँच गईं या लोगों ने उन्हें अपने पास संभाल कर रख लिया। आज इन आर्ट पीसेज की कीमत अच्छी खासी है भले उसकी कीमत “पर्सिस्टेंस ऑफ़ मेमोरी” जितनी न भी हो लेकिन हैं तो ये भी “पर्सिस्टेंस ऑफ़ मेमोरी” ही.