Parkinsons यानी मस्तिस्क के न्यूरॉन्स का नष्ट होते जाना
मष्तिष्क की सक्रियता से कंट्रोल हो सकता है पर्किंसंस
आजकल की दौड़भाग वाली जिंदगी में बढ़ते जा रहे तनाव से कई बीमारियां सीधे दिमाग को प्रभावित करती हैं. दिमाग पर असर डालने वाली बीमारियों में सबसे ज्यादा त्रासद पर्किंसंस को माना जाता है क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित मस्तिष्क ही होता है. मस्तिष्क से जुड़ी कई अन्य बीमारियों से यह हटकर है. पर्किंसंस की समस्या में प्रभावित व्यक्ति की चलने-फिरने की गति धीमी पड़ जाती है, मांसपेशियां सख्त हो जाती है और शरीर में कंपन होना आम बात हो जाती है. यह बीमारी बढ़ती उम्र के साथ अपना ज्यादा से ज्यादा असर दिखाती है.
पर्किंसंस के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 11 अप्रैल को विश्व पर्किंसंस दिवस मनाया जाता है और इसे दिवस के रुप में मनाने का उद्देश्य भी यही है कि लोग अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक रहें. वर्ल्ड पर्किंसंस डे पर इस बीमारी और दुनियाभर में इससे प्रभावित लाखों लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की कोशिशें की जाती है. दरअसल पर्किंसंस की समस्या तब होती है जब मस्तिष्क के किसी क्षेत्र में तंत्रिका कोशिकाएं या न्यूरांस नष्ट होने लगते हैं. आमतौर पर ये न्यूरांस डोपामाइन बनाते हैं चूंकि डोपामाइन दिमागी सक्रियता के लिए एक जरुरी रसायन है इसलिए न्यूरांस के क्षरण के साथ डोपामाइन बनने की गति कम से कमतर होती जाती हैं, जिसका दुष्प्रभाव आखिर पर्किंसंस रोग के रूप में सामने आता है. इसके चलते व्यक्ति के सामान्य जीवन के काम धीमे हो जाना, शरीर में अकड़न, हाथ या पैर कांपना, चलते समय संतुलन खो देने जैसी दिक्कतें प्रमुख रुप से सामने आती हैं. पर्किंसंस से ग्रस्त व्यक्ति में सूंघने की क्षमता में कमी के साथ मूड स्विंग, सही नींद न आना और पेट की समस्या भी देखी जाती हैं.