March 14, 2025
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समय रहते क्यों जरुरी है मोटापे पसमय रहते क्यों जरुरी है मोटापे पर काबू करना

मोटापे पर यदि समय रहते काबू न किया जाए तो यह एक गंभीर समस्या बन सकता है और यह तो हमें पता ही है कि मोटापा कई तरह की बीमारियों का कारण भी बन सकता है. मोटापे के इलाज के लिए दवाएं, व्यायाम और आहार परिवर्तन जैसे कई उपाय हैं जो यदि समय रहते किए जाएं तो काफी कारगर हो सकते हैं. हालांकि कई बार ध्यान न दिए जाने के चलते मोटापा इतना ज्यादा हो जाता है कि फिर ये उपाय ज्यादा कारगर नहीं रह जाते यानी इनसे भी पर्याप्त वजन कम नहीं हो पाता है. मोटापे की एक बड़ी वजह यह मानी जाती है कि पहले की अपेक्षा अब खानपान में काफी बदलाव हो गया है. जंक फूड खाने, देर रात को खाने, व्यायाम नहीं करने के कारण लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं. इससे बचाव के लिए डॉक्टर यही सलाह देते हैं कि हमें नियमित व्यायाम तो करना ही चाहिए साथ ही हमं अपने खाने पीने की आदत पर ध्यान देना चाहिए और जहां तक संभव हो पौष्टिक आहार को ही अपने खाने में शामिल करना चाहिए, हालांकि शौकिया जंक फूड खा लेने में भी दिक्कत नहीं है लेकिन तब भी हमें इसे बहुत सीमित मात्रा में ही लेना चाहिए.

खाने-पीने के असंतुलन के चलते अब छोटे बच्चों तक में मोटापे के लक्षण तेजी से बढ़ रहे हैं और युवाओं में भी मोटापे को लेकर शिकायतें बढ़ रही हैं. किंतु खाने में परहेज हर रोज शारीरिक व्यायाम से इस समस्या से निजात पाया जा सकता है. यदि फिर भी मोटापा नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो बेरिएट्रिक सर्जरी भी इसका एक समाधान हो सकता है. बेरिएट्रिक सर्जरी बिना किसी चीर-फाड़ के लेप्रोस्कोपी के माध्यम से दूरबीन पद्धति से की जाती है, जिसमें खाने की थैली का आकार कम कर दिया जाता है. इस सर्जरी से छह से आठ माह में 40 किलोग्राम तक वजन या अतिरिक्त भार का अस्सी प्रतिशत तक कम हो सकता है. सामान्यतः बीएमआइ (बॉडी मास इंडेक्स) 35 या उससे ज्यादा हो जाने पर ही बेरिएट्रिक सर्जरी को विकल्प बतौर चुनने की सलाह दी जाती है. हालांकि जब डॉक्टर को लगे कि मधुमेह या ऐसी ही कोई अन्य समस्या के चलते मरीज की जरुरत है तो बीएमआई के 32 होने पर भी सर्जरी की सलाह दी जा सकती है..

किन लक्षणों से समझें कि मामला किडनी का हो सकता है

किडनी मानव शरीर के उन अंगों में से है जो अंग स्वयं को पुनः विकसित नहीं कर पाता. यानी की किडनी की कोशिकाएं( नेफ्रांस) में रिजनरेशन की क्षमता नहीं होती है. सेहतमंद व्यक्ति में भी 40 वर्ष की उम्र के बाद गुर्दे की कार्य क्षमता लगातार घटती जाती है और इसका लगभग एक फीसद प्रति वर्ष प्राकृतिक पतन शुरू हो जाता है. यदि किसी व्यक्ति को डायबिटीज, हाइपरटेंशन, अधिक मोटापा, जेनेटिक या आटोइम्यून बीमारियां, किडनी या यूरेटर में पथरी, मूत्र संक्रमण, हृदय रोग, लिवर रोग, कैंसर इत्यादि जैसी कोई बीमारी हो तो यह दर तेज भी हो सकती है. इसी तरह ज्यादा पेन किलर गोलियां लेने वालों की किडनी की सेहत भी तेजी से बिगड़ती देखी गई है. किडनी के मामले में सतर्कता बहतु अच्छी होती है क्योंकि यदि किडनी की समस्या के बारे में जल्द पता लग जाए तो तो किडनी की खराबी की दर को दवओं से धीमा किया जा सकता है. सही समय पर किडनी की समस्या पता चलने पर विशेषज्ञ डायलिसिस तक से बचाने में मदद कर सकते हैं. किडनी के रोगों के लक्षण में आमतौर पर बीमारी बढ़ जाने के बाद ही समस्याएं बढ़े हुए रुप में सामने आती हैं. किडनी की समस्या के संकेत में पेशाब ज्यादा या कम आना, पेशाब में जलन होना, पेशाब में लालपन होना या झाग आना, चेहरे पर या हाथ पैर पर सूजन आना, कम उम्र में ब्लड प्रेशर की समस्या होना आदि लक्षण प्रमुख होते हैं. ऐसे लक्षण होने पर हमें यदि किडनी रोग विशेषज्ञ की सलाह समय पर मिल जाए तो इलाज ज्यादा बेहतर हो सकते हैं.

तंबाकू छोड़ने में कारगर है निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी

तंबाकू का इस्तेमाल करने वाले तो इस आदत के चलते बाद में स्वास्थ्य को लेकर परेशान होते ही हैं लेकिन उनके पास रहने वाले लोगों के लिए भी तंबाकू करने वाले बड़ा खतरा खड़ा करते हैं. सिगरेट का धुआं जितना सिगरेट पीने वाले को नुकसान करता है लगभग उसी अनुपात में इसके धुएं के संपर्क में मौजूद लोगों को भी नुकसान पहुंचाता है. तंबाकू से हर साल 80 लाख से अधिक लोगों की मौत होती है, जिसमें लगभग सवा लाख लोग ऐसे हैं जो मारे तो तंबाकू के चलते जाते हैं लेकिन ये सीधे धूम्रपान या तंबाकू का इस्तेमाल नहीं करते. ऐसे लोग जो बिना तंबाकू का इस्तेमाल किए ही इसके दुष्प्रभावों का शिकार होते हैं वे पैसिव स्मोकिंग के चलते ही परेशान होते हैं. तंबाकू से होने वाली बीमारियों में सबसे ज्यादा कैंसर के मामले सामने आते है. ओरल कैंसर का तो सबसे बड़ा कारण ही तंबाकू के उत्पाद हैं. वहीं लंग कैंसर, खाने की नली का कैंसर, पेट का कैंसर, ब्लड कैंसर के मामलों में भी तंबाकू उत्पाद की भागीदारी काफी ज्यादा है. इनके अलावा बहुत सारे मरीजों में तंबाकू की वजह से दमा, सीओपीडी, अंधापन, कोरोनरी हार्ट डिसीज, गैंग्रीन जैसी बीमारियां भी तंबाकू के चलते ही देखी जाती हैं. तंबाकू से बचने के लिए जीवनशैली में बदलाव करना जरूरी है, वैसे तो इससे दूर रहना ही सबसे अच्छा उपया है लेकिन जो इसकी लत में आ चुके हैं उनके लिए निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी एक अच्छा विकल्प है. तंबाकू को लेकर हर किसी के अपने ट्रिगर पाइंट होते हैं, जिससे धूम्रपान की इच्छा होती है. ऐसे में जो भी सिगरेट या तंबाकू खाने की आदत छोड़ना चाहते हैं, तो उनके लिए बेहतर यही है कि वे इन ट्रिगर्स से बचकर रहें. जिन्हें तंबाकू छोड़नी हो उन्हें अपने आहार में अधिक सब्जिया और फलों को शामिल करना चाहिए ताकि निकोटिन की जरुरत इनके चलते कम महसूस हो. तंबाकू की आदत छोड़ने के लिए शारीरिक गतिविधियों में व्यस्त रहना और अपनी आदत को मजबूती से छोड़ने के लिए अपने ध्यान को तंबाकू उत्पाद से हटाने की कोशिश भी कारगर होती है और कुछ ही समय तक यदि इससे ध्यान सफलता से हटा दिया जाए तो बाद में लत छोड़ना आसान होता है. अगर आप धूम्रपान छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, तो अपने करीबियों को भी इस काम में मदद करने के लिए कहें.

पीसीओएस में मददगार है वजन को नियंत्रित रखना

पा लीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) महिलाओं में होने वाला एक ऐसी हार्मोनल समस्या है जो महिलाओं के एक बड़ी जनसंख्या में आ जाती है. इससे मासिक धर्म की अनियमितता, चेहरे पर बालों का बढ़ना और वजन बढ़ने जैसी समस्याएं होना आम बात है. इस समस्या का मुख्य कारण शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध और हार्मोनल असंतुलन को माना जाता है. पीसीओएस की समस्या से निपटने के लिए सबसे कारगर उपाय वजन को काबू में रखने को माना जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं के लिए अपने कुल वजन का केवल पांच प्रतिशत तक घटाना ही सकारात्मक परिणाम दिखा सकता है. वजन में कमी से शरीर में इंसुलिन की संवेदनशीलता बढ़ती है, जिससे इंसुलिन प्रतिरोध कम होता है और हार्मोनल संतुलन सुधारने में मदद मिलती है. यह मासिक धर्म चक्र को नियमित करने, त्वचा की समस्याओं को कम करने और गर्भधारण की संभावनाओं को बढ़ाने में भी सहायक है. इसके अलावा, वजन कम करने से दिल से संबंधित बीमारियों और टाइप 2 डायबिटीज जैसी जटिलताओं से बचा जा सकता है. इसके लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाना जरूरी है. पहले के जमाने में महिलाओं की दिनचर्या बहुत ही सक्रिय होती थी, जिसमें शारीरिक श्रम का बड़ा योगदान था. घर के काम, खेतों में काम करना और शारीरिक गतिविधियों के चलते उनका वजन नियंत्रित रहता था. इसके अलावा प्राकृतिक और पौष्टिक आहार, जैसे सब्जियां, फल, दालें और मोटे अनाज का सेवन, हामर्मोनल संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है. इसीलिए सलाह यह दी जाती है कि महिलाओं को अपनी दिनचर्या में शारीरिक गतिविधियों को जरुर शामिल करना चाहिए.

मष्तिष्क की सक्रियता से कंट्रोल हो सकता है पर्किंसंस

आजकल की दौड़भाग वाली जिंदगी में बढ़ते जा रहे तनाव से कई बीमारियां सीधे दिमाग को प्रभावित करती हैं. दिमाग पर असर डालने वाली बीमारियों में सबसे ज्यादा त्रासद पर्किंसंस को माना जाता है क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित मस्तिष्क ही होता है. मस्तिष्क से जुड़ी कई अन्य बीमारियों से यह हटकर है. पर्किंसंस की समस्या में प्रभावित व्यक्ति की चलने-फिरने की गति धीमी पड़ जाती है, मांसपेशियां सख्त हो जाती है और शरीर में कंपन होना आम बात हो जाती है. यह बीमारी बढ़ती उम्र के साथ अपना ज्यादा से ज्यादा असर दिखाती है. पर्किंसंस के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 11 अप्रैल को विश्व पर्किंसंस दिवस मनाया जाता है और इसे दिवस के रुप में मनाने का उद्देश्य भी यही है कि लोग अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक रहें. वर्ल्ड पर्किंसंस डे पर इस बीमारी और दुनियाभर में इससे प्रभावित लाखों लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की कोशिशें की जाती है. दरअसल पर्किंसंस की समस्या तब होती है जब मस्तिष्क के किसी क्षेत्र में तंत्रिका कोशिकाएं या न्यूरांस नष्ट होने लगते हैं. आमतौर पर ये न्यूरांस डोपामाइन बनाते हैं चूंकि डोपामाइन दिमागी सक्रियता के लिए एक जरुरी रसायन है इसलिए न्यूरांस के क्षरण के साथ डोपामाइन बनने की गति कम से कमतर होती जाती हैं, जिसका दुष्प्रभाव आखिर पर्किंसंस रोग के रूप में सामने आता है. इसके चलते व्यक्ति के सामान्य जीवन के काम धीमे हो जाना, शरीर में अकड़न, हाथ या पैर कांपना, चलते समय संतुलन खो देने जैसी दिक्कतें प्रमुख रुप से सामने आती हैं. पर्किंसंस से ग्रस्त व्यक्ति में सूंघने की क्षमता में कमी के साथ मूड स्विंग, सही नींद न आना और पेट की समस्या भी देखी जाती हैं